सफलता के पद चिन्ह

                राष्ट्रीय लोक अदालतें जिनका आयोजन  राष्ट्रव्यापी स्तर पर किया जा रहा है, अब समय के धरातल पर अपने पदचिन्ह छोडने लगी हैं।  उत्तर प्रदेश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को विभिन्न जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों से कई ऐसे प्रकरण प्राप्त हुए हैं, जिनसे यह धारणायें बली होती हैं कि यदि सही दिशा दी जाय तो असम्भव सी दीखने वाली समस्यायें, वादविवाद एवं झगडे सुलझाये जा सकते है।  आवश्यकता है केवल सद्भावी प्रयासों की एवं इच्छाशक्ति की, चाहे वह जिला सुल्तानपुर के वैवाहिक सम्बन्धों पर आधारित पति पत्नी श्रीमती मिथलेश एवं श्री विनोद, श्रीमती अर्चना एवं श्री आशीष, श्रीमती रामा एवं श्री नीरज या  जिला बदायू के श्रीमती सुनीता मिश्रा एवं श्री राम लखन, श्रीमती जैतुल निशां एवं श्री वाहिद, श्रीमती पारूल कश्यप एवं श्री नीरज कुमार के कुटुम्ब न्यायालय में वर्षो से लम्बित विवाद हो या जनपद चित्रकूट के श्री मुश्ताक एवं श्रीमती शहरबानो एवं उसकी पुत्री के खर्चे का विवाद हो  या जनपद गाजीपुर में श्री राधेश्याम विन्द का ऋण सम्बन्धी दीवानी मामला हो जिसमें लगभग 3 माह लगातार 12 सत्रों में पक्षकारों के मध्य अनवरत सन्धिवार्ताएं करायी गयी, अंततः समझौते से मामला सुलझ गया, सभी मामले लोक अदालत की सफलता के द्योतक हैं।

    सामान्य वादकारी अपने मामलों को सुलह समझौते के माध्यम से निपटाने के लिए प्रेरित हो और, दोनों पक्षों में आपसी सम्बन्ध भविष्य में सौहर्दपूर्ण बने रहें तथा सकारात्मक सोच का उदय हो, इस संदेश को जन-जन तक पहुॅचाने के लिए जनपद चित्रकूट में लोक अदालत के माध्यम से सुलझाये गये  मामले का चुनाव किया गया है।

 मूल वाद श्रीमती शान्ती बनाम परमात्मा सरन वर्ष 1997 में न्यायालय सिविल जज, चित्रकूट के यहां दायर हुआ, लगभग 20 वर्ष की लम्बी कानूनी ल्रडाई के बावजूद किसी परिणाम पर नहीं पहुचा परन्तु 17.09.2017 को आयोजित राष्ट्रीय लोक अदालत में अन्ततः निस्तारित हुआ इसकी कहानी आपके समक्ष रखी जा रही है।

 

राष्ट्रीय लोक अदालत में निस्तारित वाद की सफल कहानी

     पुरानी कहावत है कि दीवानी का मुकदमा दीवाना बना कर छोड़ता है यदि दीवानी अदालत के बारे में कहा जाये कि वादकारी जब न्याय की गुहार किये अदालत में दाखिल होता हैं तो वाद लड़ते.लड़ते जवानी से बूढ़ा हो जाता है या यू कहे कि वाद में निर्णय या परिणाम आते.आते उसके नाती.पोतें तक वाद चलते रहते है। इन्हीं सभी कारणों को दृष्टिगत रखते हुए हमारे देश के सर्वोच्च न्यायालय ने व्यापक कदम उठाते हुये राष्ट्रीय लोक अदालतों का आयोजन पूरे भारत वर्ष में चलाया हैं जिससे आम जनता को त्वरित न्याय अविलम्ब व आसान ढ़ग से उपलब्ध हो सके। ज्यादातर देखने में आता है कि झगड़े छोटी.छोटी समस्याओं से शुरू होती है और समय बीतते बीतते लोगों के अहंकार बदले की भावना से नासूर बन जाते है लेकिन हाँ आज समाज के लोगो की सोच मे परिवर्तन आया है इसका जीता जागता उदाहरण है कि दीवानी का एक वाद सन् 1997 में जिसका विवरण इस प्रकार है मूलवाद 241/1997 शानती देवी बनाम परमात्मा सरन आदि का सिविल जज सीण्डि तत्कालीन जिला बाँदा में दाखिल हुआ। यह वाद वादी एवं प्रतिवादीगणों के बीच 35 फुट जमीन को लेकर चला जिसके वादी का कथन रहा कि दिनांक. 08.09.1997 को जब वादी अपनी जमीन से लगे प्रतिवादीगणों की दीवार से फोड़े गये दरवाजों को बन्द करने के लिए कहा गया व उसके परिपेक्ष्य में प्रतिवादीगणों द्वारा जबरन वादी की जमीन जो विवादित स्थल है पर लगे पेड़ों को काटने की धमकी दी गई। प्रतिवादीगणों का लिखित कथन यह रहा कि यह विवादित स्थल जिसे क ख ग घ से दर्शित किया गया है पे 35 फुट उनके हिस्से में है जिसके वो स्वामी मालिक हैं। उपरोक्त मुकदमा तमाम न्यायालयों से होता हुआ सिविल जज (वरिष्ठ खण्ड) त्वरित न्यायालय पहुँचा इस दौरान दोनों पक्षों द्वारा उक्त विवादित भूमि पर अपने अपने दावे हक ख गवाह भी प्रस्तुत किये। उक्त छोटे से विवाद पर बात बनती न देख न्यायालय में आसीन माननीय मौ0 नसीम सिविल जज (वरिष्ठ खण्ड) एफ.टी.सी.  चित्रकूट ने वादकारियों पर प्रभावी ढ़ग से आपसी मतभेद समाप्त कर इस प्राचीन वाद पर सुलह किये जाने की पेशकश की जिसका महत्वकांक्षी परिणाम यह आया कि दोनों पक्ष आपस में न्यायालय के समक्ष बैठकर अपनी.अपनी व्यथा सुनाये और सुलहनामा दाखिल किये जिसमें वादी मुकदमा ने यह माना कि विवादित स्थल क ख ग घ उसका नहीं है। न्यायालय ने आम जनता से अपील भी कि लोग छोटे.छोटे झगड़ो को बढ़ाये बगैर आपस में सुलह.समझौते के आधार पर स्वंय में निपटारा कर लिया करें।

किसी ने सही कहा है कि देर आये दुरूस्त आये।

Success Stories of National Lok Adalat held on 08-04-2017

The UPSLSA has received several stories relating to cases settled in National Lok Adalat held on 08-04-2017. Some of them have been selected as best Success Stories. One from district Lalitpur about a dispute as old as of the year 1996 is worth mention.

 

 

A Civil dispute OS No. 309/96 pending in the court of Civil Judge Lalitpur between plaintiffs Abdul Latif and others and defendants  Umar Khan and others about a property was settled amicably in National Lok Adalat after prolonged litigation of about 21 yerars. The Counsels  of both the parties Sri Jinendra Kr. Jain And Sri P.C. Lohiya, advocates contributed a lot in bringing about the compromise. The presiding officer was also assisted by the relatives of defendants including one Sabir Ali, brother-in-law of defendant number 2 Farrukh Khan The parties, eventually, agreed to equally devide the disputed property. The amicable settlement could be reached with the efforts of all concerned, a feat, which could be achieved only in a Lok Adalat and not by traditional litigation.

 

 

Success Stories of National Lok Adalat held on 11-02-2017

One of the story is of matrimonial disputes between one Sri Viveka Nand Giri and his wife Smt. Pooja of district Mau UP who were living separately for the last three years. The story captures the moments of realization of their mistakes and a emotional reunion of the couple. The Second story is of Sri Tufail Ahmad and his wife Smt. Sabnam of district Mau UP who had three minor children from their marriage. The story depicts how both of them decided to forget the past live happily with each other. Both the stories show the potential of mediation and conciliation effort in bringing about an end to matrimonial disputes.

 


वाद संख्या 563 सन 2014
श्रीमती पूजा गिरी व अन्य प्रति विवेकानंद गिरी,
अन्तर्गत धारा 125 दण्ड प्रक्रिया संहिता,
थाना घोसी, जनपद मऊ।


वर्श 2014 में दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अन्तर्गत यह वाद 32 वर्शीय युवती श्रीमती पूजा गिरी द्वारा विपक्षी 35 वर्शीय युवक विवेकानंद गिरी आरक्षी आरमोरर पुलिस लाईन गोरखपुर के विरूद्ध संस्थित किया गया। आवेदक श्रीमती पूजा गिरी का पांच वर्शीय पुत्र भी है। वाद में यह अभिकथन किया गया कि आवेदक का विवाह विपक्षी के साथ वर्श 2007 में हुआ था और वह ससुराल जाकर अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने लगी और विपक्षी के संयोग से पुत्र हर्श पैदा हुआ। आवेदक के ससुराल जाने के समय ही विपक्षी व उसके परिवार के लोग कम दहेज मिलने के कारण उसे प्रताड़ित करने लगे। विवश होकर आवेदक के पिता ने आवेदक के नाम एक भूखण्ड गोरखपुर में खरीद कर विपक्षी को दिया और पूजा के प्रताड़ित न करने की याचना की। जमींन मिलने के कुछ समय बाद विपक्षी ने मकान बनाने के लिये दो लाख रूपये की मांग की और असमर्थता व्यक्त करने पर आवेदक को मारा पीटा तथा मोबाईल छीन कर कमरे में बंद कर दिया। सूचना पर आवेदक के पिता ने घटना की सूचना पुलिस उप महानिरीक्षक गोरखपुर को दी तो महिला थाने की पुलिस ने आवेदक को विपक्षी के घर से निकलवाकर उसके माता पिता की अभिरक्षा में दिया। कुछ लोगों की पहल व समझाने के उपरांत पुनः आवेदक ससुराल गयी तो पुनः विपक्षी दो लाख रूपये की मांग की और न देने पर मारने पीटने व प्रताड़ित करने लगा। दिनांक 07.07.2013 को विपक्षी ने आवेदक को बुरी तरह से मारा पीटा और कुकर में रखा गरम चावल आवेदक के शरीर पर फेंक कर कमरे में बंद कर दिया। सूचना पर आवेदक की मां दिनांक 09.07.2013 को आई और महिला थाने की पुलिस की सहायता से आवेदक को अपने साथ लेकर मायके आई। उक्त तिथि के उपरांत विपक्षी ने आवेदक व अवयस्क पुत्र की उपेक्षा की और भरण पोशण से इन्कार कर दिया, जिसके कारण आवेदन पत्र प्रस्तुत किया गया।
उल्लेखनीय है कि पूर्व में दिनांक 06.11.2015 को न्यायालय द्वारा समझौता कराने के उपरांत आवेदक विपक्षी के साथ गोरखपुर गयी। दिनांक 16.01.2016 को आवेदक ने न्यायालय में प्रार्थना पत्र इस आशय का प्रस्तुत किया कि वहां विपक्षी एक अन्य औरत के साथ निवास करता था और विरोध करने पर मारने पीटने लगा। दिनांक 11.12.2015 को विपक्षी ने उसे बुरी तरह से मार पीट कर गले की चेन व नाक की कील छीन कर घर से निकाल दिया।


दिनांक 02.01.2017 को आवेदक की ओर लिखित सशपथ साक्ष्य पत्रावली में प्रस्तुत किया गया। न्यायालय द्वारा विपक्षी को उसके उत्तरदायित्व का बोध कराया गया तथा प्रति परीक्षण हेतु 30.01.2017 तिथि नियत की गयी। इस मध्य पक्षकारों को समझाया गया कि उन्होंने लगभग 06 वर्श तक पति पत्नी के रूप में जीवन यापन किया हैं और यदि आप लोगों के हृदय में एकदूसरे के लिये लेशमात्र भी स्थान शेश हो तो स्वयं के सुखी व समृद्ध जीवन व बच्चे के सुखद भविश्य के लिये एक साथ रहना आवश्यक है, जिससे बच्चा भी देश का एक उत्तरदायी व समर्पित नागरिक बन सके। यह भी परामर्श दिया गया कि पति पत्नी का रिश्ता आपसी सद्भाव व विश्वास का होता है और किसी गलतफहमीं के कारण यदि सम्बन्धों में थोड़ा सा भी तनाव आ गया और उसे समय शेश रहते दूर न किया गया तो संपूर्ण जीवन कश्टमय हो जायेगा और जब तक अपनी गलतियों का बोध होगा, बहुमूल्य समय नश्ट हो चुका होगा और जीवन के लिये कुछ शेश नहीं बचेगा तथा जीवन का उद्देश्य विफल हो जायेगा। न्यायालय के समझाने पर पक्षकारों को काफी ग्लानि हुई और अपने उत्तरदायित्यों व पूर्व में की गयी गल्तियों का बोध हुआ और वे फूट-फूट कर रोने लगे और उन्होंने यह आश्वासन दिया कि वे भविश्य में अपनी गल्तियों की पुनरावृत्ति नहीं करेगें और एकदूसरे के प्रति समर्पित जीवन व्यतीत करेगें। उस समय आवेदक के विद्वान न्याय मित्र श्री अजय यती भी न्यायालय में उपस्थित थे और उनके द्वारा भी पक्षकारों को काफी समझाया गया। पक्षकारों की ओर से वाद को दिनांक 11.02.2017 को आयोजित राश्ट्रीय लोक अदालत में नियत किये जाने की याचना की। राश्ट्रीय लोक अदालत में संधि संधि का प्रयास पूर्णरूपेण सफल रहा और संधि के उपरांत विपक्षी अपनी पत्नी व बच्चे को साथ ले गया और पक्षकार बच्चे सहित सफल व समर्पित जीवन यापन कर रहे हैं। न्यायालय में उपस्थित आवेदक के विद्वान न्याय मित्र श्री अजय यती ने अवगत कराया गया कि, पक्षकार जो विगत तीन वर्श से पृथक रूप से जीवन यापन कथे, संधि के उपरांत सफलतापूर्वक जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
 
                                        

वाद संख्या 498 सन 2016
तुफैल अहमद प्रति शबनम,
एवम
वाद संख्या 507 सन 2016
श्रीमती शबनम व अन्य प्रति तुफैल अहमद
अन्तर्गत धारा 125 दण्ड प्रक्रिया संहिता,
थाना मुहम्मदाबाद, जनपद मऊ


दिनांक 21.12.2016 को वैवाहिक सम्बन्धों के पुनर्स्थापन हेतु यह वाद 38 वर्शीय नवयुवक तुफैल अहमद द्वारा विपक्षी 35 वर्शीय युवती शबनम के विरूद्ध संस्थित कर यह अभिकथन किया गया कि आवेदक का विवाह विपक्षी के साथ दिनांक 29.01.2005 को मुस्लिम धर्म रीति रिवाज के अनुसार रू0-5051/ मेहर नियत कर हुआ था। विपक्षी प्रारम्भ से ही याची के घर आधुनिक सुख सुविधायें न होने की शिकायत करने लगी। विपक्षी आधुनिक विचार की फैशनपरस्त महिला है और संयुक्त परिवार में नहीं रहना चाहती है। याची के माता पिता बृद्ध हैं। विपक्षी याची पर परिवार के अलग रहने के लिये दबाव देने लगी तथा मना करने पर विवाद करने लगी। इसी मध्य याची व विपक्षी के संयोग से तीन बच्चे तलउत आयु 09 वर्श, निकहत आयु 07 वर्श तथा तौसीफ आयु 03 वर्श पैदा हुये। याची विवश होकर विपक्षी के साथ दूसरे मकान में रहने लगा। याची के पिता ने भरण पोशण हेतु एक लूम खरीद कर याची को दिया, लेकिन विपक्षी भाग कर मायके जाने लगी और पूछने पर विवाद करने लगी। याची वर्श 2014 में अपनी पत्नी व बच्चों को माता पिता की देखरेख में छोड़ कर सउदी अरब चला गया। याची विपक्षी को भरण पोशण व बच्चों की चिकित्सा हेतु लगभग एक लाख चालीस हजार रूपये दिया। अगस्त सन 2016 में विपक्षी अपने भाईयों को बुलाकर आभूशण, कीमती सामान व तीस हजार रूपये लेकर मायके चली गयी। याची के पिता ने विदाई का प्रयास किया, लेकिन विपक्षी ने ससुराल आने से इन्कार कर दिया। याचिका संस्थित करने के एक सप्ताह पूर्व याची सउदी अरब से आया और अपने पिता व रिश्तेदारों के साथ विदाई के लिये ससुराल गया तो विपक्षी के पिता ने याची पर ससुराल में ही निवास करने के लिये दबाव दिया और सभी संभव प्रयास के बावजूद भी विपक्षी ससुराल आकर दाम्पत्य सम्बन्धों का निर्वहन करने को तैयार नहीं हुई, जिसके कारण याचिका संस्थित की गयी।
इसी अनुक्रम में दिनांक 05.09.2016 को आवेदक श्रीमती शबनम की ओर से वाद संख्या 507 सन 2016 स्वयं व अवयस्क पुत्रीगण तलअत व निकहत व पुत्र तौसिफ के भरण पोशण हेतु संस्थित किया गया।
उपर्युक्त दोनों वादों में दिनांक 12.01.2017 को प्रभारी पीठासीन अधिकारी द्वारा संधि का प्रयास किया गया और दिनांक 19.01.2017 तिथि नियत की गयी। दिनांक 19.01.2017 को न्यायालय द्वारा पक्षकारों को समझाया गया कि वे लगभग 11 वर्श तक पति पत्नी के रूप में जीवन यापन किये हैं और यदि वे अपने मस्तिश्क के बजाय हृदय पर ध्यान केन्द्रीत कर अपने व बच्चों के सुखद भविश्य पर विचार करें और पति पत्नी एक दूसरे के प्रति समर्पित भाव से एकदूसरे की सुख सुविधाओं व बच्चों के भविश्य पर ध्यान दें। पृथक रूप से जीवन यादव करने पर उनका जीवन कश्टमय हो जायेगा और बच्चों का भविश्य प्रभावित होगा और बच्चे स्वयं, समाज व राश्ट्र के प्रति अपने उत्तरदायित्वों का निर्वहन नहीं कर सकेंगें। यह भी समझाया गया कि पति पत्नी का रिश्ता आपसी आत्मविश्वास का होता है और किसी कारणवश उसमें तनाव आ गया तो उन्हें एकदूसरे से बात कर तनाव के कारणों की तलाश कर उन्हें दूर कर सफलतापूर्वक जीवन यापन करना होगा। याची को न्यायालय में उपस्थित अवयस्क बच्चों से मिलवाया गया तो वह बच्चों को अपने आगोश में लेकर फूट फूट कर रोने लगा और विपक्षी को भी अपने दायित्व व गल्तियों का बोध हुआ और वह भी दुखी होकर रोने लगी तथा पक्षकारों ने स्वयं व बच्चों के भविश्य के लिये एक साथ रहने का आश्वासन न्यायालय को दिया और आश्वस्त किया कि भविश्य में अपनी गलतियों की पुनरावृत्ति नहीं करेगें और एकदूसरे के प्रति समर्पित जीवन व्यतीत करेगें।
पक्षकारों की ओर से वाद को दिनांक 11.02.2017 को आयोजित राश्ट्रीय लोक अदालत में नियत किये जाने की याचना की। राश्ट्रीय लोक अदालत में संधि का प्रयास पूर्णरूपेण सफल रहा और संधि के उपरांत विपक्षी बच्चों को साथ लेकर पति के साथ गयी और पक्षकार बच्चों सहित सफल व समर्पित जीवन यापन कर रहे हैं।